वाह हिन्दुस्तान
शुक्रवार, अक्टूबर 1
कहाँ नहीं ढूँढा ??
जो खिल गए वो फूल बाजारों में बिक गए ...
जो कलियाँ थी वो उनके केशुवो में सज़ गए ...
हम बागों में खुशबू ढूँढ़ते रह गए ...
कुछ यादों में मिले..कुछ फ़ना हो गए ...
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